हवालदिल हो गया जमाना

    ( तर्ज : छंद : हरिका नाम सुमर नर प्यारे...)
हवालदिल हो गया जमाना, वाहवारें क्या हुआ गजब !
कभी न ऐसा शोर हुआ था,नजरमें आया अभि अजब ।।टेक।।
जो पैदा करता है दाना, उसको नहीं मिलती रोटी ।
रोते है उनके बालक, पर नहिं  देते  कवडी  फूटी ।।
बदनपे कपडा नहीं जरासां, संब तनपर चिंधी छायी ।
तुम्ही कमाओ, तुम पछताओ, मरो-कदर किसीको नाही ।।
घरके मालक चोर हुए और धन दुसरोंने लूटा सब ।। कभी0।।१।।
मोती जैसे बदन जिन्होंके, खानेसे मुंहताज हए ।
हड्डी-फसली निकलके बाहर,अब वह भीकमदास हुए ।।
गयी जवानी चिंता करते, तन-धनसे सब फाक हुए ।
बुद्धि भी खीचली किसीने, स्वतंत्रताबिन राख हुए ।।
गुंडोका तो भला हुआ, इज्जतदारोंकी ढब उतरी ।। कभी0।।२।।
समझदारोंकी अक्ल खोयी, बंद हुए पिंजरेमॉही ।
वक्ताओंकी जबाँ बंद कर, लटकायी नोकरशाहीं ।।
पंडीत-साधू-भजनी इनको डरा दिया दे धमकायी ।
हम करते सो अच्छा बोलो,नहिं तो कम्बक्ती आयी ।।
चकडबंद कर दिया है भारत ! भगने भी नहिं पाते सब।। कभी 0।।३।।
दर्द किसीका किसे न छूटा, मर पाये रावण जैसे ।
तुमरी-हमरी कथा कहाँ? चल गये हैं दुर्योधन जैसे ।।
परमपिता सबका है वाली, सहन कहाँतक हो उनसे ?
समयपे अपनी सब कोइ करते, रह जाते जैसे-वैसे ।।
भूलके ऐसा समय न आवे, जो हमने देखा है अब ।। कभी 0 ।।४।।
हे जगतारक ! जनम-उध्दारक ! दे सबको अच्छी अक्कल ।
लोभ-मोह इनके सब खोकर,हो इनमे सेवाका बल ।।
घमंड ना हो किसिको अपनी, सत्ताका, शैतानीका ।
न्याय-नीतीका सभीपे कब्जा, बना रहें  इन्सानीका ।
तुकड्यादास कहे बस कर यह, स्वास्थका सारा मतलब।। कभी 0।।५।।