जब श्याम भये बेख्याल

           (तर्ज: जब तुमहि चले परदेश...) 
जब श्याम भये बेख्याल, हमारे हाल, पुछो मत भाई ।
भारतमें गुलामी छायी ।।टेक।।
जब गिरिधरलाल यहाँपर थे,तब भारति सबके सरपर थे ।
प्रिय श्याम! गये निजधाम,मिटा सब नाम,निशान तबाही ।
भारतमें गुलामी छायी ।।१।।
जब घी-मक्खन घरघर में था,तब जोश सभीके सरमें था ।
अब देश भया कंगाल, चबाने दाल, चने ना पाई ।
भारतमें गुलामी छायी ।।२।।
थे वीर बडे गोपाल यहाँ, ना गले किसीकी दाल यहाँ ।
अब पडा कालका फाँस, हुआ सब नाश, बेबंदशाही ।
भारतमें गुलामी छायी ।।३।।
घरघरमें चरखा चलता था,तब बदनपे कपडा मिलता था ।
अब लोक भये बेकार, जगत्‌कों भार, बढ़ी शौकाई ।
भारतमें गुलामी छायी ।।४।।
आखिर आवाज उठाते है,आजादीको बली  जाते  है ।
कहता है तुकड्यादास, प्रभूको लाज, करे सुखदायी ।
भारतमें गुलामी छायी ।।५।।