सुनते है अब अकाला आता
सुनते है अब अकाला आता,किसके गले उतरता है ।
किसके घरको भरता है और किसको फाका गिरता है।।टेक।।
अपने आप यह अकाल आया या किसने बनवाया है।
या बेपारीने बुलवाया, अंत हमें नहिं पाया है ।।
क्या जाने लोगोंने लाया, या ईश्वर भिजवाया है ।
जो आनेकें पहिलें घरघर डरको दिया भराया है ।।
अगर करे इन्सान भला तो, अबभी वक्त गुजरता है ।
नौकरशाही, साहुकार कर सकें तो गरिब सुधरता हैं।।1।।
जनकी नीयतमें न फरक हो, तब तो कभी अकाल नहीं ।
आधी-आधी मिलकर खावें, होवेंगे फिर हाल नहीं।।
जानबूझकर मरवाना हो, तब तो चले इलाज नहीं ।
अगर सभीकी रायसे हो तो, आवे अभी दुकान नहीं।।
हम बोले सो करो कायदा यह गर आगे होवेगा।
तब तो बुरा नतीजा है, यह आगे समय बतावेगा।।
कोई नहीं किसके हैं वाली यह दिल सबके छावेगा।
याद रखो ए दुनियादारों ! फागका मौका आवेगा ।।
बडेपनाको कोई न पुछता, जीपर दर्द उतरता है ।
हम क्यों मरें,सभीको लेंगे, ऐसा ध्वनी उछरता है ।।2।।
सभीने मिलकर सुलह मचाना, और यह समय निभा देना।
जभी सुसम्भव होगा जगमें शान्तीका जीता रहना ।।
देशभरेकी हमदर्दोंसे पूछपूछकर सला करो ।
छोटा-मोटा भाव भुलाकर, सब दुनियाका भला करो।।
बेपारी की तुच्छ भावना, अपनी आहसे दूर करो ।
आधा -आधा सब जन खाओ, जहाँ न हो हाजीर करो।।
ऐसा जबके निश्चित हो, मन निर्भयतासे भरता है ।
बूढ़े, बालक, युवक सभी से भारतदेश सुधरता है।।
कहता तुकड्यादास यही, आज दुनियाको समझाता है ।
रहो नेकीसे सब मिलकर, जीवन का उद्धार करो ।।3।।