खडा हूँ व्दार पर मैं

        (तर्ज: मैं वो दिल हैं जो... )
खडा   हूँ द्वार पर मैं, आस लगाये ।
खडा हूँ कामसे एक, ध्यास लगाये! ।।टेक॥
मैं तो इश्कको  ही, जान   बहाऊँ ।
तुझे ना ये कहुँ तो  किसको कहाऊँ ?
चीज  कर, वरना   प्यास   बुझा   दे ! ।।1।।
जिसको लगी है, वेहि जान सकेंगे ।
बातके करनेसे कोई, पा नं सकेंगे ।
पडा हूँ  जागते, कोई  खब्र   सुना  दे ।।2॥
नहिं मैं नींद में,कोई मुझको भुला दे।
हटूं ना दर्श बिना चाहे  मिला   दे ।
अर्जी है तुकड्याकी,कहीं दिलसे लगा दे ! ।।3॥