उठजा,उठजा, उठजा, जोगी

(तर्ज: मत जा, मत जा, मत जा जोगी! ..राग-भैरवी)
उठजा, उठजा, उठजा, जोगी ।
समय       नहीं         सोनेका ! ।।टेक।।
व्यापी है व्यसनोंसे जनता ।
भूल गयी भक्ती की ममता ।।
तू क्‍यों सोया ? जग जा, जोगी ! ।।1।।
चरित्र-धन खो बेठा सारा।
त्याग नहीं, कैसे हो उजारा ?
नाहक   रहता   बोझा,   जोगी ! ।।2॥
धर्म गया, बाजार भया है ।
नया जमाना, आज जिया है ।।
है कि नहीं  तू  समझा, जोगी ?  ।।3।।
काल सवार हुआ खानेको |
तुकड्या कहे,कस अजमानेको ।।
चल तू अलख जगा जा,जोगी ! ।।4।।