कहिं न देखी - प्रेम शान्ति
(राग- खमाज, ताल-दादरा)
कहिं न देखि प्रेम-शान्ति, ढूँढ-दूँढ आगया ।
ढूँढ-ढूँढ आगया अब देखके उबा गया ! ।।टेक।।
सुन्दर मन्दिर देखे, मन्दिर के शिखर देखे ।
शिखर के सुवर्ण देख, कनक नूर छा गया ! ।।1।।
रंगभरी मूर्ति देखी, मूर्तिपर भि झाँकि देखी ।
झाँकीमें जवाहर की, चमक -झलक पा गया! ।।2।।
भव्य रूप है विशाल, गगनभेदि ध्वज झलाल ।
फहरे दिलकर बहाँ ले, तैज गुण गा गया ! ।।3।।
शाम -सुबो बजत ताल,भेरी -शख अरु कनाल।
गाते सब मधुर गान, भैरवी औ जोगिया ! ।।4।।
ये तो है सब उपांग, भक्ती है मुख्य अंग ।
तुकड्या कहे वही रंग, हर जगा मुरझा गया! ।।5॥
गुरुकुंज आश्रम, दि. 0७-१९१-१९६३