चाहिए प्रेम ही फिर तो
(तर्ज : श्याम सुंदरकी मीठी छगी बांसुरी...)
चाहिए प्रेम ही, फिर तो किसकी कमी।
दिखा दो किसका नाम,हम भी लेते हमी।।टेक।।
दिखती जिसके बदनपर प्रभूकी छटा।
बाँके दर्शनसे जाता है पातक हटा !
मैं तो यह ना कहूँ बात है लाजमी ।।1।।
सदा संत संगतसे न्हाया कोई ।
उसके जीवनको कबहूँ भी धोखा नहीं।
मैं तो दिलसे कहूँ, नम्र है आदमी ।।2।।
ऐ मेरे प्रेमीयों, प्रेम तो सीखलो ।
मजा क्या है इसीमें, जरा देख लो ।
दास तुकड्याने पाया,निशाना यही ।।3।।