लाखो गरीब बैठे है दरबार तुम्हारे
(तर्ज: साबरमती के सन्त तने...)
लाखो गरीब बैठे है दरबार तुम्हारे ।
मिलती है वहाँ शान्ति,जनता ही पुकारे ।।टेक।।
ऐ लहानूजी मेरे बाबा ! तू कौन ? बता दे ।
किस देवताने तुझको मोहा है ? दिखा दे ।
कुछ तेरे करिश्मों को, हम भी तो निहारे।
मिलती है वहाँ शान्ति 0 ।।1।।
गली में तेरी रंगत, तेरी मार में बर है।
जिसको प्रसाद दे तो बेडा ही पार है।।
कितने ही बिमारों को अच्छा बना डारे।
मिलती है वहाँ शान्ति 0 ।।2।।
दिखता न तेरा भेख-कोई जोगी गुसाई।
पर उनसे नहीं कमती तेरी साधुता भाई!।।
किस अवलियाने तुझको बरदान से तारे?
मिलती है वहाँ शान्ति 0।।3।।
वरखेड का गुरुदेव तेरा इष्ट बडा था।
जंगल में तेरा डेरा कई साल पडा था।।
तुकड्या कहे ए बाबा ! अमर कीर्ति के तारे
मिलती है वहाँ शान्ति 0 ।।4।।