समय आगया और निकल जा रहा है। इन्सान तू क्यों उसे खो रहा है?
(तर्ज : जमीं चल रही आसमाँ.... )
समय आगया और निकल जा रहा है।
इन्सान तू क्यों उसे खो रहा है? ।। टेक ।।
अगर कुछ करेगा तो भगवान होगा।
खाली रहेगा तो धोखाहि होगा।।
न सम्हले वो आखिर में,दु:ख पा रहा है ।। १ ।।
समय देखकर शूर लड़ते है रणमें।
चाहे जान जावे न ॒पर्वा है उनमें।।
वही नामका बाज, बजवा रहा है ।। २ ॥
गया शांतिका वो जमाना हवासे।
अभी डट्के रहना पड़ेगा दुवासे।।
तभी चीज होगा, जनम ये महा है ।। ३ ॥
समय जो गमाता, ओ मूरख कहाता ।
न खुद भी तरे ना किसीको तराता ।।
कहे दास तुकड्या, समझ ये कहाँ है ! ।। ४ ।।