अजी जाती पुछो ना कोई
(तर्ज : नाम घेता तुझे गोविन्द...)
अजी जाती पुछो ना कोई ।
हम मानव है समुदायी ।।टेक।।
हम सबका ईश्वर एकी। यह विश्व देश है एकी ।
पाने का धर्म भी एकी। यही समझ धरो मनमाँही ।।1।।
हम सब मिल विश्व सजाते।धनीजन-मन एक कहाते।
कोई भिन्न नहीं समझाते । यही ग्यान परम सुखदायी ।।2।।
सब पाये दिलमें गम है। सब कोई करे परिश्रम है ।
झगडे का मूल खतम । हम एक अनंत कहाई ।।3।।
अग्यान से झगडा सारा। धर्म-जाती भेद सहारा ।
यह अवडंबर की धारा । हम तोड चले जगमाँही ।।4।।
तुकड्याने निजरुप खोला। यही श्री नारायण बोला।
बंधन का तोडा ताला। अध्यात्मिक दर्शन ये ही ।।5।।