दिलबर के लिये, दिलवर है मह
(तर्ज : हर देशमें तू, हर भेष में तू...)
दिलबर के लिये, दिलदार है हम ।
दुश्मन के लिये तलवार है हम ।।
मानवके लिये परिवार है हम।
दानवके लिये अंगार है हम ।।टेक।।
यह जान गया, कोई मान गया,फिर भी न भरोसा है हमको।
हद भारतकी जब छोडके दे, फिर मित्र कहे तैयार है हम ।।१।।
हम सचसे अपनानेको चले, शान्तीकी समझ देनेको चले।
गर धोखे में कोई वार करे, उस बैरीको खुंखार है हम ।।२।।
हम मानव एक समझते है, पर दानव नहीं बढ़ने देंगे।
आजादी किसिकी कोई छिने, उनके सरपे सरदार है हम।।३।।
अब देशका बच्चा जोशमें है, शत्रू पर विजय कमानेको।
वह तुकड्यादास कहे सुधरो, नहीं तो, लो ये तैयार है हम।।४।।