जमाने का बदला है रंग धीरे - धीरे। बचो यार कलजुग के, संग धीरे-धीरे

(तर्ज : जिधर देखता हूँ उधर तूही है... )

जमाने का बदला है रंग धीरे - धीरे।
बचो यार कलजुग के, संग धीरे-धीरे ।। टेक ॥
खुले अब किवाडे, जो बंद थे अभीतक।
अमल हो रहा अबके संग धीरे-धीरे   ।।१॥
जहाँपर न थी बोलनेकी इजाजत।
वहाँपर बडा मुंह - जंग धीरे - धीरे     ।।२॥
दबाये थे हमको, हमारे वतन को।
चले अब बनाने, अभंग धीरे - धीरे   ।। ३ ॥
कहे दास तुकड्या, सचाईसे बढकर।
नहीं कोई रास्ता, सजग धीरे - धीरे   ।।४ ॥