तीरथों के बासीयों
(तर्ज : हर जगह की रोशनी में. . . )
तीरथों के बासियों ! तुम्हरा भी तो यह तीर्थ है !
लूटने को यात्रियों को ही, नहीं यह सिर्फ है ।।टेक॥
शील और ईमानदारी, है पुजा भगवान की।
क्या न सन्तों ने बतायी, यह तुम्हें ही शर्त है ? ।।1।।
क्षेत्र में जो पाप करते, वह नहीं मिटता कभी।
मूर्ख औरों को बनाकर, डूबता खुद धूर्त है ।।2।।
भक्ति की धारा बहायी, साधु-सन्तों ने जहाँ।
तुम बने गंगा के पत्थर, क्या चुकेगी गर्त है ।।3।।
खूद करो शुध्दाचरण,सबको सिखाओ सत्य ही।
तनुहीबने फिर तीर्थही,वही होत सन्त-समर्थ है।।4।।
पूर्व पुण्याई बडी थी, इसलिये स्थल यह मिला ।
कहत तुकड्या साधलो,नहिं तो जनम यह व्यर्थ है।।5।।