सोचने काबिल नहीं उसको
(तर्ज : हर जगह की रोशनी में... )
सोचने काबिल नहीं, उसको हि सोचे जा रहा ।
उम्र मिट्टी में मिला दी, क्या नतीजा पा रहा ?।।टेक।।
घरको ही सोचा सदा,
और जर को सोचे दिन गये ।
अब तो रही थोड़ी बखत,फिरभी उसीको गा रहा।।1।।
पेट को सारा समय,
बाकी बचा सो शौक को।
कुछ नहीं भगवान को, बैमान बनके खा रहा ।।2।।
बैल होकर जिन्दगी का,
झंझटों में फेस गया।
क्या बतावेगा प्रभू को ? मुंह दिखाने कया रहा? ।।3।।
फिर भी ईश्वर है दयालु,
प्रार्थथा कर, सर झुका ।
दास तुकड्या की हमी है, पापी भी तर जा रहा ।।4।।