ऐ प्रीतम साँवरे ! दिखादे
(तर्ज : प्रीत तुझी माझी... )
ए प्रीतम साँवरे ! दिखादे वह कुंजनकी गली ।
जहाँपर अपने साथ देहकी सुधबुध गोपी भुली।।टेक।।
हम आशक है उस कुंजनके,
जहाँपर भेद मिटे तनमनके ।।
रास चली थी खुली ।। दिखादे0।।१।।
जिसमें शंकर का मन मोही ।
योगीमुनि सब देत गवाही ।।
अचरज महिमा चली ।। दिखादे0 ।।२।।
जहाँपर गौऐं खेल रही थी ।
गोपालन संग झूम रही थी।।
जरा न दिलसे ढली ।। दिखादे0।।३।।
अब हमरे कुंजनमें आsजा।
तुकड्या कहे जहाँ सूरत साजा ।।
जगमग ज्योति जली।। दिखादे0।।४।।