क्या लिखा नही ? सब लिखा

(तर्ज : हजर जगह की रोशनी में. ... )

   क्या लिखा नहीं ? सब लिखा,
   लिखता ही हूँ अब तक भी में ।
   लिखना नहीं सीखा किसी से,
   पर   न   लेता   शक   भी   मैं ।।टेक।।
मन की चंचलता नहीं जाती है लिखने से कभी ।
दूर होता  मोह   उसका, जब  बनूँ   प्रेरक  भी मैं ।।1।।
चाहता हूँ , मैं दिवाना ही रहेँ  दिनरात  भी ।
वह नशा मुझ में है पर, करता नहीं हूँ हक भी में ।।2।।
किस जगह कमजोर मानव, जानता हूँ साक्षि से ।
हो उसे बल प्राप्त सारा, इसलिये धग धग हूँ  में ।।3।।
अब तो लगता छोड दूं,सब तन वतन और जन सभी ।
दास तुकड्या ही नहीं, बस ब्रह्म का ही रंग हूँ मैं।।4।।