जिसकी उसकी निन्दा करने
(तर्ज : तार बार तोहे क्या समझाये.... )
जिसकी उसकी निन्दा करने, आया सबको जोर।
चलो अब सच कामों की ओर।।
हो गया मालुम धर्म सभी, बिगडी है नैतिक डोर ।
करो कुछ काम, बनो सिरमौर ।।टेक।।
कौन करेगा काम यहाँ, बिना तुम्हारे साथ दिये ?
कानुन तो तुमने हि किया, अब क्या हो गर भाग गये ? सोच निकालो मार्ग नये।।
एक एक भी निकलो बन्दे! चरित्र से बल जोर ।। चलो 0।।1।।
जहाँ कहीं अन्याय दिखे, डटकर के तैयार रहो।
मर जाओ बलकी वहाँ पर,फिर ऊँचा है नाम कहो।
सोच -समझकर के ही रहो।।
ऐसे बीर बनेंगे जब तो,भागेंगे घुसखोर ।। चलो 0।।2।।
कहनेवाले लाख यहाँ, करनेवाला एक नहीं ।
कैसा देश सुधर जाये ?त्याग नहीं और जाग नहीं ।
अब तो इसकी हद ही भयी।।
उठों बढो ये भारतवासी! घर में घुस गये चोर ।। चलो 0।।3।।
धर्म सभी गिरता हि रहा,कौन बचावे लाज यहाँ?
हम तो सोच के पागल हैं,नहिं सूझे अंदाज यहाँ।
कहे तुकड्या, ढूंढें तो कहाँ ?
जनतासे कोई निकलो बाहर, क्रांति करो घनघोर ।। चलो 0।।4।।