दिलसे जपो, चाहे मुंह से जपो
(तर्ज- हम दे भरी जे...)
दिलसे जपो, चाहे मुंह से जपो,
नाम जपनेसे उध्दार होता हि है ।।टेक।।
चिन्तन है सच्चा, दृढ होगी इच्छा ।
निर्मल सदाचार, फलसे अनिच्छा |
सादा ही जीवन बना रहो ।।
अजि! चलते कहो ,सोते -जगते कहो ।
धीरे धीरे सुधार फिर तो होताहि है ।।1।।
जो भूलसे पैर पड़ता अगन में।
जलता ही है, काम करता है छिन में।
वैसेहि प्रभु का भजन है ।।
नाम तारे नहीं, यह क्या होगा कहीं ?
दास तुकड्या तो गाता बजाता हि है ।।2।।