जो नम्र सदा, प्रिय भावुक है

            (तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे... )
जो नम्र सदा,प्रिय भावुक है,वही जन-आदर को प्राप्त रहे।
जिनके मुखसे नित सत्य बहे, वही वन्दनीय सर्वत्र रहे ।।टेक।।
जो अपनीही तारीफ करे, हरदम अभिमानमें धून्द रहे।
उसे मुर्ख समझ करके जनता, उसके सँग नहीं   तिल- मात्र रहे ।।1।।
सत्‌गुणकी महता सब गावे,गुणवान सभी के दिलभावे।
चातुर्य है जिनकी बानीमें, वे धीर-वीर सब शास्त्र कहें ।।2।।
सत्ताधारी राजा   अपने देशमें  पूजा     जा  सकता ।
गुणवान सभी जनमें, जगमें, मनमें भी सबका मित्र रहे ।।3।।
जो नित्यप्रति उपकार करे, और परपीडासे दुःखित है।
तुकड्या कहे धन्य वही नर है,उसके सिर किरत छत्र रहे ।।4।।