कर न आशा भोगकी
(तर्ज : क्या लिखा नहीं सब लिखा... )
कर न आशा भोगकी, तबही सुखी हो जायगा ।
भोगही है दुःखदायक,सब जनम भटकायगा ।।टेक।।
कर्म करताही रहे,
पर आस मत कर भोगकी ।।
जो मिले संतुष्ट रह, निर्मोह पद फिर पायगा।।१।।
संयमी हो विषयवृत्ती ,
शील हो, संतोष हो ।।
नैराश्य ना हो श्वास में,उत्साह गुरु दिखलायगा।।२।।
जो मिले सब है हमारे,
विश्वभर परिवारके ।।
फिरभी न हम किसमें फँसे,निर्धार उँच उठायगा ।।३।।
त्यागभी और भोग भी,
दोनों हटाना वृत्ति से ।।
तुकड्या कहे यहि मुक्त जीवन,अमरपद लेजायगा।।४।।