तत्व में म एक है पर
(तर्ज : आकळावा प्रेम भावे.... )
तत्व में हम एक हैं पर, भिन्न देशियता रही हैं ।
मर्म में विष बो दिया, जिससे न एकी हो रही हैं ।।टेक ।।
खोज करनेमें लगे जो, कहते धर्म में भेद क्या ? ।
इन्सानका आदर्श एक है, देश - गीते गा रही है ।।1।।
अपनी-अपनी कर बडाई, बचपना से खेलते ।
मर्मज्ञ कहते ये-कि है, ईश्वर न दिक्कत जा रही है।।2।।
बात है मिलने-मिलाने की तो मिलते आ रही है।
हम समझदारी से सबको, सहानुभूति पा रही है।।3।।
मिलके रहना ही तो हे ये, दाना - पानी दे सके।
कितने नजदिक हम खडे हैं,बात बाकी क्या रही है ?।।4।।
मत डरो सब विश्वकी, एकी करानेको गो ।
कहत तुकड्या संतने तो, भारती में गा रखी है ।।5।।