तू हरी - भजन कर बावरे

           (तर्ज : बन्सिका बजाना छोड दे... )
तू हरी-भजन कर बावरे, तेरा जन्म सफल हो जाये ।
क्यों धन-धन करता ढूँढता ? तेरे साथमें कुछ नही आवे ।।टेक।।
कितने थें राजे-महाराजे, महल-अटारी   घोडे   फौजें ।
कहाँ गया परिवार ठाठ सब,मिट गयी फिरती नाँव रे।।1।।
यह है जीव-जगत्‌ का नाता, मेरा मेरा कहकर जाता ।
हाथ नहीं कुछ आता बन्दे ! नागानीकी   छाँव  रे ।।2।।
जो पीछे कर्मोका दोषी, वही भोगेगा अब चौन्याशी ।
तूने फाँसी क्यों लगवा ली ?-आसक्तीके  डाँव  रे ।।3।।
धन जोडा था वाल्मिकजीने,पूछा घर जाकरके उसने ।
नारद भक्त कहे क्या बोले, कोई ना बोले हाँव रे ।।4।।
रावण धन जोडे बैठा था, मस्ती में भग लाई सीता ।
पडा तडाखा हनुमान का,जला दिया सब गाँव रे।।5।।
सुनता है तो सुन मेरी बातें,नहीं तो जा जमके घर बीते 
तुकड्यादास कहे, सन्तन की सेवा में उद्धार रे ! ।।6।।