तू तो सद्गुण की मूर्ती होजा भला !
(तर्ज : सारी दुनिया का तू ही...)
तू तो सद्गुण की मूर्ति होजा भला !
सारे अवगुणकी जीवनसे तजके कला ।।टेक।।
सद्गुणों का ही दुनियाँ में बहूमान है ।
जीतेजी और मरनेपे भी ध्यान है ।।
वर्ष के वर्ष भी नाम लेते खुला ।।1।।
धन भी हो तो ये तनसे छूटा जायेगा ।
ज्वानीका ये है चक्कर, न रह पायेगा।।
नारी-पुत्रोंके जरिये जायेगा जला ।।2।।
और सारी बडाई हे नाटक बनी।
चेहरा उतरा कि मुंहमें है मक्खी जमी ।।
कोई बोलेना, पूँछेना तेरी सला ।।3।।
अगर तुने न पाया सदाचार को।
शील और भक्ति,नीति जगत् प्यारको ।।
कहता तुकड्या तू तो मोत जीता चला।।4।।