है बेद सभी के पासमें
(तर्ज : बन्सिका बजाना छोड दे...)
हैं बेद सभी के पासमें, पर ढूंढेसे ही मिलेगा ।
अंधा चाहता गढ जितने, बिन साथ ही क्या चढ़ लेगा ? ।।टेक।।
बेद की माने निर्मल वाणी, सत्-असत् सभी को छानी।
सदाचार-सद् वृत्ति धरेसे, मिलता हदय-निवास में ।।1।।
जिसने काम - क्रोधको जीता, मनपर विजय किया है बीता।
संयम ही जिसका जीवन हैं, उसको दिखे प्रकाशमें।।2।।
सब संसार हमारा घर है, नहीं मरने-जीनेका डर है।
ऐसी जिसकी वृत्ति बनी है, मस्त रहे अभ्यासभें ।।3।।
जिनका मुख है प्रेमकी धारा, जिसमें अपने आप उजारा।
वो चाहे बक देवे कैसे, शास्त्र बनेगा खास में ।।4।।
तुमतों बेद-किताबें पढते, व्याकरणोंको लेके अकडते।
वह तो भाषा है मानवकी, जावेगी कभु नाशभें ? ।।5।।
जिसने प्रणव -मन्त्रकों घोका, मिटा उसीका सारा धोका।
तुकड्यादास कहे,ऐ भक्तों !अग्नी बाँसकी साँसमें।।6।