आशा-निराशा के बस मैं नहीं हूँ । मेरा खेल है ये, में जानता हूँ

(तर्ज: अजब है ये दुनिया... )

आशा-निराशा के बस मैं नहीं हूँ ।
मेरा खेल   है  ये, में   जानता  हूँ ।। टेक ।।
मेरे सामने मैंने देखी निराशा ।
मेरे सामने मैंने सोची है आशा ।।
मेरा ये तमाशा, पहिचानता हूँ । मेरा खेल है ये0।।१।।
पहिले ही मैं  था, आखिर भी मैं हूँ ।
सभी है गायब फिर भी मैं  हूँ ।।
मैं  आतमा हूँ, मै छानता हूँ । मेरा  खेल  है  ये0 ।।२।।
सभी देव आते औ जाते हजारों ।
सभी पंथ बनते, बिगडते हजारों ।।
न मुझमें फरक है,मैं एक-सा हूँ । मेरा खेल है ये0।।३।।
यहाँपर जो मैने, मै हूँ बताया ।
वही सच्चिदानंद कोई जताया ॥।
कहे दास तुकड्या मै का भी मैं हूँ । मेरा खेल है ये 0।।४।।