हे यार ! लगा है इश्क छुटे ना हमसे

         (तर्ज: क्या इतना कहकर यार ...)
हे यार ! लगा  है  इश्क   छुटे ना   हमसे ।
धुन लगी पियाकी आठों जाम हरदम से ।।टेक।।
अब लाग्यो श्रावणमास, बेलकी  ख्वारी ।
जा  शंकरजीको   पूजे  खूब  नरनारी ।।
अलबेला वो शंकर भोला डमरूधारी ।
चले शीश गंगाकी धार, उठे नित गहरी ।।
सब अंग लगायो भस्म चित्त-चित्त वारी ।
ओढा आसन   मृगचर्म   तपी   तपवारी ।।
लपटे है गलेमे भुजंग काले   धुमसे । धुन लगी 0।।१।।
धर शीश जटा, लछलाट चंद्रकी रेषा ।
गले मुंडमाल, वह चमके  भानू  जैसा ।।
कर लियो त्रिशुल, ले शंख रंग में नाचे ।
कइ शुकसनकादिक ऋषी खुशीसे पहुँचे ।।
कैलास खुला   एक   बागबगीचा   लागा ।
जामें शंकरभोला करे   तपस्या   नागा ।।
सब भूल परी,करते पूजा,तन-मनसे । धुन लगी0।।२।।
हट गया अंधेरा, घटा फटी बादलकी ।
चमके बिजली लखलखे रंग झिलमिलकी ।।
लगा ध्यान हटे ना कभी   हटावे   भाई ।
खूब भई नशा भरपूर   अंग - मनमाँही ।।
तुकड्याकी गई सब सुधी-बुधी बिसराई ।
भई सफल आस महाराज ! दर्श दे दाई ।।
बिन देखे शांति न आवे, झुमूं आतमसे । धुन लगी 0।।३।।