तू भारत का एहसान मना

                   (तर्ज: राग ; बागेश्री .... )
                तू भारत का एहसान मना ।
                जब उसका खाता है  चना ! ।। टेक।।
भारत है जीवन तेरा,क्यों फिर दूसरी जात पुकारा ।
भेद खेद सब करदे फना ।।१।।
जात भारती, धर्म भारती, भारत की ही करो आरती ।
भारत का   पहनो   गहना ।।२।।
भारत का हो भंगी-ब्राहमण,सबका अपना एकही हो मन ।
सदाही रहे   आजाद  बना ।।३।।
अलग रहे कुछ काम धाम भी,भारतवंशी कुल तमाम भी ।
तन-मन-धन भारत  अपना ।।४।।
जो भारत का खाये खाना, भारतीय उसने कहलाना ।
तुकड्या कहे,यह मंत्र धुना ।।५।।