तुम कुछ दैवी गुण नहीं पावो
(तर्ज : हरि भजन से सुख पायेगारे... )
तुम कुछ दैवी गुण नहीं पावो, जमको क्या बताओगे ?
आखर रामनाम नहीं गावो,नाहक ही मर जावोगे ।।टेक।।
वैसी तो मरती है चिडियाँ,म्हैसा सुकर-श्वान-कुतरियाँ।
तुम भी धन-धन करते भूँको, गत कर जावोगे ।।1।।
तुम तो अच्छा कबुतर है,फिकर करे नहीं रहता तर है।
फिकर-फिकरमें हम तो डुबे, क्या सुख पावोगे ? ।।2।।
सुकर तो कचरेमें खुश है गद्धोंका सडर्के ही ब्रश है।
मनुष्य! तेरा कहाँपे जश है, सब समझ न पावोगे ।।3।।
अंतरमुख हो सोच जरासा,छोड अभी तो मनकी आसा।
तुकड्यादास कहे,पढ गीता; तब तो ग्यान कमावोगे।। 4।।