हम नाचे भजनके रंगमें
(तर्ज : तुइया स्वरूपा सदा आनंद...)
हम नाचे भजनके रंगमें, कहो कौन चलोगे संगमें ।
कुछ लाज रखो नहीं अंगमें, फिर कूदों भक्तिके जंगमें ।।टेक।।
जिसको है फिकर इस तनकी, चंचलता छोडी न मनकी।
हर घडी ख्याल है धनकी,वो पडे ही क्यों इस भंगमें ? ।।1।।
जिसको अपना घर प्यारा, अति मोह पुत्र और दारा ।
उसको नहीं यहाँ किनारा, सब जोख लगे है अगमें ।। 2।।
हम सबसे निपट चुके है, जन-गणसे उजट चुके है।
घरबार से भी फट चुके हैं, आये मस्तों के ढंगमें ।।3।।
अब नाचमें एकही होगा, दूहीका भेद हटेगा ।
तुकड्या कहे मनही बनेगा, इस संतसंगके चंगमें ।।4।।