तुने बीनाकी तार छेडी है
(तर्ज : तुझया स्वरूपी सदा आनंद... )
तुने बीनाकी तार छेडी है, मेरे कानों में गूँज पडी है ।
अब चैन न घडी-घडी है, नैननमें निशा चढी है ।।टेक।।
लगे भाग कहाँपर जाऊँ, सुख अपना किसे सुनाऊँ ?
नाचूँ की पहले गाऊँ?- मेरी प्रेमकी बाँह बढ़ी है ।।१।।
था खड़ा बीच मंदरमें, आवाज चला अंदरमें ।
कानोंको लपट भीतरमें, सोsहं की लगी झडी है ।।2।।
सब कान-नाक झन्कारे, अनहद्के बजे नगारे ॥
तुकड्या कहे, सत्गुरु प्यारे ! तेरी दयासे सुरती जडी है।।3।।