चारित्र्य नीति सिखाओ रे,घर-घर चारित्र्य नीति सिखाओ ।

चारित्र्य नीति सिखाओ रे,घर-घर चारित्र्य नीति सिखाओ  ।। टेक ।।
ये देखो छोटेसे बालक, कहीं नम्र नहीं होते !
नहीं ध्यान कुछ नहीं मंत्र न गीता पशु समान ही रहते रे ।। १॥
उन्हे न अपना धर्म समझता, हम है कौन-कहाँ के ।
भेडी-बकरी जैसे बिचरे, वैसे स्कुल   इन्होंके   रे ।।२।।
माता-पिता है बडा खिलौना, उनका कहना न माने।
दे पैसे जाता हूँ सिनेमा  उल्टी उनको    ताने    रे  ।।३॥
गुरुजनको शत्रु ही  समझते, ऐसा जमाना आया।
तुकड्यादास कहे कुछ समझो, फिर ना उठे उठाया रे ।।४।।