हम है अपणे दिलके मौजी
(तर्ज : बन्दे! परूभर राम सुमरना..)
हम है अपने दिलके मौजी ।
मन-बुद्धीसे लडत हमारी -
साक्षी दल के फौजी ! ।। टेक ।।
दुनिया चाहे धन-दौलत को ,
हम नहीं उसमें राजी।
रूखा-सूखा खाके चलता -
मस्त हमारी हाँजी ।।1।।
सब चाहे जोरू-लडकोंको ,
हम कुटियाँ में राजी।
काली कम्बल और गोदरी -
हम पहनी, हम दर्जी ।।2।।
सब चाहते है मान-प्रतिष्ठा ,
हम न उसीसे राजी ।
सबकी धूल पड़े वहाँ बैठे -
जहाँ हमारी मर्जी ! ।।3।।
यह संसार खेल है सारा,
जरा न हम हैं गर्जी ।
तुकड्यादास कहे,जिन्दगीमें -
सत्गुरु ! रखना राजी ।।4।।