जो परनिन्दा, परद्रव्य हरे
(तर्ज : दिलमें ही नहीं जब शान्ति मिली... )
जो परनिन्दा, पर-द्रव्य हरे, उनसे व्यवहार कभू न करो।
जिनकी मतिमें सत्संग नहीं, उनकी संगतको भंग करो।।टेक।।
जो आग लगाने नहीं डरते, चुगली कर झगडे लडवाते।
वे मानव नहीं है, दानव है, उनको हर चीजसे तंग करो।।1।।
वे लिखे पढे भी हो शायद, फिर तो जहरीले ज्यादा है।
उनको नर भक्ष की आदत है, बातोंसे मार के दंग करो।।2।।
जो समाज पर ही पते है,अभीमान समझकर मिलते है।
तुकड्या कहे वह नामर्द है नर, मत उनके दरपे नीर भरो।।3।।