अरे ! तू फिक्र क्यो करता
अरे ! तू फ़िक्र क्यों करता,फिकर करनेसे कया होगा।।
जलायेगा तू अपना दिल, बनेगा सो भी नहिं होगा ।।टेक।।
सोचना और बातें हैं, फिकर करना है नादानी ।
सोचता वही जो करता हैं, तू तो रोता पड़ा होगा ।।1।।
सोचते हिम्मते बन्दर, कूद पड़नेको वृक्षों पर ।
फिकर करते न मरने की, सफल उनका जीना होगा।।2।।
शेर नहीं आलसी होता, न मरता गोली खा करके।
मगर दरियोंमें सोता है, मरेगा नहीं तो क्या होगा ।।3।।
साँप डरपोक है भारी, भागता ही सदा रहता ।
उसी में है मरन उसका, जहर भी है तो क्या होगा।।4।।
दरिद्री रहता है दुर्जन, मिले पैंसा वहीं लपटे ।
अगर श्रीमंती हो उसकी, तो उसका पार क्या होगा ? ।।5।।
मनुष्य उत्तम भी है सबसे, मगर इस फिक्रने लूटा ।
है वो तुकड्यादास कहता है,तो फिर उद्धार क्या होगा ? ।।6।।