हम प्रीत करें पर तुम न करो
(तर्ज : हर देशमें तू, हर भेषमें तू...)
हम प्रीत करें पर तुम न करो, यह कौन देश की रीति है ?
हम ध्यान धरें तुम छूप जावो, ऐसीं तुमपर क्या बीति है ? ।।टेक।।
ये मुरलीधर, मनमोहन तुम, फिर क्योंकर सुंदर रूप धरे ?
होना था पुतना मोसी-सा, तब दूर भगी होती मति है ।।1।।
ऐ बन्सीधर! इस बन्सीमें, इतनी मीठी क्यों तान भरी ?
भरना था गर्दभ राग कोई, फिर कोई न सुनता तूंती है ।।2।।
ये भक्तहदय इतनों के तुम, निभवाये कैसे जीवन को ?
तुकड्या कहे हम नहीं लायक तो फिर तार चढा क्यों रहता है ।।3।।