लोग वही और भोग वही

         (तर्ज: देश सांभाठा धर्मह्दी पाठा... )
              लोग वही और भोग वही है ।
जहाँ देखा तहाँ योग वही, संजोग वही है ।।टेक ।।
जल-पर्वत-वृक्षों की छाया,कहिं गरमी कहि ठण्डी माया
अपनी अपनी दृष्टी लगाये, सुख पाये हो, सुख पाये होsss ।।१।।
जो जागृत है उसे. जागृति, जहाँ-वहाँ मिलती अनुभूती
अनजाने पछताए हो,पछताए हो,पछताए होडss ।।२।।
जो चाहते आगे बढ़ने को,सभी जगा है शिक्षण उनको।
धर्म बनाये,देश बनाए,एकही है हो,एकही है होडss।।३।।
घाम चलो या ग्राममें बैठो,जमीं चलो ऑआँसमा में छूटो
जबतक समझ न आये, कुछ नहि पाये हो, नहि पाये होsss।।४।।
निसर्ग का है वैभव सारा, रखलो चाहे नाम पियारा ।
तुकड्यादास कहे अनुभव कुछ,भिन्न नाही, भिन्न नाही होsss।।५।।