हे शंकरगिर ! गिरिपराही चढा

                (तर्ज: भगवानने अपने जैसा...)
हे शंकरगिर ! गिरिपरही चढा,तेरा तप और तपस्या काम करे ।
तू टाकरखेड में बैठा पर, भारतमें तेरा नाम स्मरे ।।टिक।।
छोटीसी  कुटियाभी तेरी बड़ी साफ रहे,हमने देखा ।
तू हाथ उठाकर दे कुछभी,गरिबोंका बेडा पार करे ।।१।।
निःस्पृहसा था बैरागभरा,तेरी बात चले अपने संगमें ।
दुनियाही समझती है उसको, तेरा बोलभी दुखमें काम करे ।।२।।
तू बैद्यराजसे बैद्य बडा, तेरी मिट्टीमें भारी दुआ चमके
लहानजी नाम तो छोटा है, पर काम तेरा-अस्मान डरे ।।३।।
ताँताही लगा रहता दरपे, सबकीहि निगा तेरे नूरपे है ।
तुकड्याको ख़ुशी है दर्शनसे,तू और जिये तेरी कीर्ति फिरे ।।४।।