स्वामी सीतारामदासने !
(तर्ज: उठा गड्या अरूणोदय झाला...)
स्वामी सीतारामदासने ! योग भक्ती की जोड भरी ।
जनसेवा और गुरु - सेवामें, मुद्रा ली खेचरी ।।टेक।।
गुरु की परंपरा को माना, सबको भक्ती दिया ।
अखंड यात्रा की जनतामें, जीवन ही बह दिया ।।१।।
त्याग दिया सब मोह,अटल भंडार भेट सब किया ।
मंडला के तटका आश्रम भी,मेरे स्वाधिन किया ।।२।।
जाहिर करके भक्त लोग को,बचन सभीसे लिया ।
निर्मल स्थान बनाके रेवा तटकी शोभा किया ।।३।।
सदा जोगि का भेख पहनकर भारतभर घुम लिया।
रामटेक बंगाल प्रात में आश्रम स्थापन किया ।।४।।
श्री कौसल्यादास कृपासे, अंतरंग सध लिया ।
गोस्वामी श्रीतुलसीदास का,मार्ग सभी को दिया।।५।।
मैने परमप्रेमी वह पाया, जब मै मिलने गया ।
तुकड्यादास कहे स्वामीने ! नाम अमर कर लिया।।६।।