राष्ट्र - कार्यका पथ हो एक
( तर्ज : प्यारा हिन्दुस्थान है...)
राष्ट्र-कार्यका पथ हो एक, उसमें सेवक हों सब नेक ।
परस्परोंसे मिलकर बोले, करे संगठन का उल्लेख ।।टेक।।
आपस में फूटा - फाटी, निन्दा - बद्दी - दमदाटी ।
इससे देश नहीं बढ पाये,सुनो मेरी पत्थर की रेख।।1।।
अपने-अपने स्वारथको, कभू नहीं करना सिखो |
सबकी भलाई को देखो, तब बैठे शत्रुपर मेख ।।2।।
अन्दर-बाहर दूजा भाव, तब समझो डूबी है नाव ।
कट मर जावोगे तुम सारे, उस दिन पढ़ना मेरा लेख ।।3।।
जाँती-पाँती ना देखो, पढा-लिखा भी ना देखो।
सब अपने परिवार के समझो ,हो किसका कोई भी भेख ।।4।।
जो बनता सो काम करो, कुचराई दिलमें न धरो ।
यही धर्म और कर्म हमारे, सच्चे भक्तिकी है परेख ।।5।।
यही है तुकड्या की आवाज, ईश्वर के दर्शनका साज ।
गुरुदेव का मंत्र यही है, सेवकने निभवाना टेक ।।6।।