अजगर करता नहीं चाकरी
(तर्ज : वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्.... )
अजगर करता नहीं चाकरी, पंछी नहीं करता है काम ।
ऐसा मानव कहाँ करेगा, मर जायेंगे जीव तमाम।।टेक ।।
इसके बलपर देश खडा है, इसके पेटपे सब पलते।
ये उद्योग करे ना कुछ भी, महल-अटारी भी जलते।।1।।
हर किसको करना है धंधा, सबके जीवित रहनेका।
लगे हुए है एक-एकसे, करके नहीं होता धोखा ।।2।।
मानव का है धर्म, किसीका मुफ्त नहीं कभु खाना है।
श्रम करना दनियामें तबही, भोजन हक्क का पाना है।।3।।
किसान -धोबी -चमार-भंगी,, सबका यहाँ ठिकाना है।
ग्यानी-ध्यानी सब पते हैं, उनको नहीं भुलाना है ।।4।।
बडे-बडे हैं वकील -डॉक्टर, मंत्री-जंत्री सब सारे ।
अपना -अपना काम करे तब, दुनिया का भी पेट भरे।।5।।
अगर आलसी हो कोई इसमें, तब तो उतना लकवा है।
लूला होगा देश हमारा, वतन को चूभे जखवा है ।।6।।
पण्डित-साधू और पुजारी का भी इसमें काम बडा।
कहता तुकड्या मिलके रहो, तब देश रहे आदर्श खडा।।7।।