साधो ! क्यो बाहर का त्यागे ?
(तर्ज ..बाबा ! सबसे मीठा बोल.. )
साधो ! क्यो बाहर का त्यागे ? ।।टेक।।
चोरीह्र्छलबल कपट न त्यागे।
झूठा बोल, विषय नहीं त्यागे।
जबरदस्ती हिंसा और गांजा -
इनके तो पिछु लागे ।। साधो! क्यों ? 0।।1।।
मान -प्रतिष्ठा खातिर दौडे।
स्थीर न चलते मनके घोडे !
संयम तो खानेमें नाही-
धन-धन कहते भागे ।। साधो ! क्यों ? 0।।2।।
पूजा करते नौकर तेरे।
तू जजमान को लाता घेरे ।
भाव -भक्ति बतलाता उनको -
दौडे आगे-आगे।। साधो ! क्यों ? 0।।3।।
तुझसें तो इन्सान बडा है ।
जो अपनी नेकी पे खडा है।
अपने घरका काम निपटकर -
तेरे पैरों लागे।। साधो ! क्यों ? 0।।4।।
साधुका जब भेख बनाना।
अन्दर-बाहर एक समाना।
तुकड्यादास कहे, प्रभु-भक्ति - ही
मत छोड़े दम त्यागे।। साधो ! क्यों ? 0।।5।।