समता की रोशनी का एक

( रुसी नेता स्टालीन को अर्पित राष्ट्रसंतजी की गीत श्रद्धांजली)
समता की रोशनी का,एक दिव्य उजारा  था ।
नवनिर्मिती के बलका,युवकोंका  सहारा  था ।।
एक उच्च जगत की वह दृष्टीका सितारा था । 
चाहे कोई हो प्यारे, पर तू   भी   नजारा   था ।।
छोटेसे कुलसे बढकर, इतनाभी ऊँच  उठना ।
आसान नहीं सबको, उतनी मजलपे  चढना ।।
टकराये पर्वतोंसे, फिरभी   पीछे   न   हटना ।
बहादूर था तू तो स्टालिन ! पलमे हुआ है सपना ।।
श्रीराम कृष्ण जिसके, कारण से  लडे   खेले ।
शिवराय, महाराणा, जिसके बचपन पे तोले ।।
जनता की आह पर तो, तूने भी   बोल   बोले ।
दुनिया की कदर करने,दुनियाकी आँख खोले ।।
अपने लिये जो करता, तो शत्रु   कहा   जाता ।
सबके लिये किया है   करके   भला   कहाता ।।
जो कुछ भी शक्ति थी सब इन्सानको बहाता ।
जितना दिया है तूने, बिरलाही कोइ देता ।।
ऐ साथियों ! न डरना,फाटक तो जा खुले है ।
सोचो वही चलो तुम, जिस राहपर चले है ।।
जहाँतक के हो सकेगा,तो शान्ति लो भले है ।
आया वही जमाना, अब तो फले   फुले  है ।।
इन्सान बनके रहना, यह ही जगत्‌ कहेगा ।
धन धर्म पंथ सबका, सबके लिये रहेगा ।।
यह ऊँच-नीच नाता, दुनियासे टला होगा ।
सबके भलाईमें ही, तेरा भी भला होगा ।।
स्टालिन की मृत्युने तो ,मुझको यही सिखाया ।
इन्सान ! तू तो अपनी, इन्सानियत को आया ।।
जो रोकते तुझे   है, रहने   न   दे   बकाया ।
तुकड्या कहे इशारा तूने हमें बताया ।।