ऐसा था वह जमाना
(तर्ज: सद्गुरु नाम तुम्हारा...)
ऐसा था वह जमाना,क्या बतलाना ?
अपमानित था जीवन अपना ।।टेक।।
कितने देशभक्त बन्दी थे ।
जो आजादी के छंदी थे ।
कठिन तपस्या के धुंदी थे ।
भारी दु:ख उठाना ,बलि चढ जाना ।
पर निश्चय का मन्त्रहि जपना ।।१।।
ऐसा समय बिता कइ सालों ।
कहाँतक शान्ति -शान्ति-ही बोलो ?
क्यों अपना हक खुद ना लेलो ?
यह आवाज उठाना, लेके निशाना।
लाखों लोग बढाये सीना ।।२।।
यह सब गांधी की स्फूर्ती थी ।
जहाँ-वहाँ उसकी मूर्ती थी ।
सब जनता करती पूर्ती थी ।
यह किसने देखा ना? रंग सुहाना,
नाम जरा तो बोले अपना ।।३।।
हम भी उस गंगा में नहाये ।
आजादी का जंग चलाये ।
पत्थर भी तो बाँम बनाये ।
कहे तुकड्या यह गाना,घर-घर छाना,
पूर्ण हुआ बापूका सपना ।।४।।