आया हूँ दरबार तुम्हारे ।
आया हूँ दरबार तुम्हारे ।
बहूत जनम का भूला भटका,लगवाले प्रभू! चरण सहारे ।। टेक ॥
तुमरो नाम पतित-पावन है, बहु दिस गावत सब जन-गण है।
मुझको काहे फिरावत मारे ?।। आया 0।।१।।
धन नहिं मांगू, मांगू न सत्ता, नहिं मांगू विषयनकी ममता ।
ऐ प्रभू ! प्रेमकि दृष्टि निहारे ।। आया0 ।।२॥
भाग बडे तुमसे मन लागा, नहिं तो जाता जम-घर भागा।
तुकड्या कहे, सुन अर्ज हमारे।। आया 0 ।।३।।