साबरमति के तटपर देखा । सुन्दरसा आश्रम बापू का

         (तर्ज: रामभजनबिन को सुख...) 
           साबरमति के तटपर देखा ।
          सुन्दरसा आश्रम बापू का ।
          मैं   देखने   गया    था  ।।टेक।। 
निष्ठाके,लोग वहाँ । रचना का,कार्य रहा । 
भूमि बडी रम्य थी, योगधाम । 
मैं देखने गया था0 ।।१।।
भाई-बहन,सब थे जिगर । होके रही,गलती मगर ।
कैसे यह बर्दास्त हो, झूठ काम?
मैं देखने गया था 0।।२।।
तब छोड़ा, बापूने । वह आश्रम, क्या जाने?
मंगल बसाया था धाम, सेवाग्राम ।
मैं देखने गया था 0।।३।।
देहाती, प्रीय लगे । दलितों का, प्रेम जगे ।
तुकड्याने भजन किया, लेके नाम ।
मैं देखने गया था 0।।४।।