वह गांधीका जीवन सतजुग समान ही था

वह गांधीजी का जीवन सतजुग समान ही था ।
चारित्र्य , रामभक्ती, सच  नेम   प्राण   ही   था ।।टेक।।
थी     छोटिसी    कुटैया,
मिट्टी और बाँसही की । 
चिन्ता थी देशभर  की, वह   एकला   नहीं   था ।।१।।
अपना खुदी  का   खर्चा
हो स्वावलम्बी, कम हो ।
कम्बल और खादी -पंचा,चरखा,निधी यही था ।।२।।
भोजन वही. तुला हो,
बाकी न   बचने  पावे ।
पाबन्दी थी समय की, ना   स्वाद - मानही   था ।।३।।
सब धर्म एक - से थे ।
ना  पंथ-जाति  कोई ।
मानव्य - मूल्य   प्यारे, प्यारा   निसर्ग   ही   था ।।४।।
खुद करके  भंगी - मुक्ती,
दिखलायी  कुष्ठ - सेवा । 
बिन प्रार्थना के एक दिन खाली रहा   नही  था ।।५।।
सारा   हिसाबी   जीवन,
पलपल करार दिल का ।
तुकड्या कहे जो देखा, बाहर-भीतर सही  था ।।६।।