हरदम देखे आनंदी,गांधीजी हरदम देखे छंदी
(तर्ज: सच्चा धरम नहि जाना... )
हरदम देखे आनंदी,
गांधीजी हरदम देखे छंदी ।।टेक।।
चिन्ता थी देशकी उन्हें, पर जरा न दिखने पावे ।
जो आवे बस प्रेमसे बोले, अपना दुख नहि गावे ।।१।।
एक-एक सिर जिम्मेदारी, पहाडसी आती थी ।
सभी थकान प्रार्थनामें ही, फौरन मिट जाती थी ।।२।।
बिचार की गम्भीर मूर्ति वह,दिखे न विकृत क्रोधी ।
बच्चोमें खिल जाते बापू, दिखते कभी विनोदी ।।३।।
एक दिन सुबह हजामत की धुन,पुछा तो बतलाये ।
आता है पंडीत जवाहर, उसे ठीक लग जाये ।।४।।
साफसफाई अपने हाथों खुशी खुशी कर पाते ।
शर्म नहीं थी उन्हें जराभी, ख़ुद संडास उठाते ।।५।।
सेवामें उनको देखा था, हो कही कुष्ठ- बिमारी ।
आकर मेरे बुखारमें भी, खुदहि दवा की सारी ।।६।।
अजब प्रयोगी सब बातोंके, दिलसे मगन हो जावे ।
तुकड्यादास कहे सब करके मनमें राम रिझावे ।।७।।