अरे हमीं गलतियाँ खातें, करेंगे क्या किसीका हल ?

             ( तर्ज : बजाई बन्सरी मोहन... )
अरे हमीं गलतियाँ खातें, करेंगे क्या किसीका हल ?
पहिनना माल आसानी, निभाना है बडा मुश्किल ।।टेक ।।
काम और क्रोध की ज्वाला में होते खाक हम-जैसे।
क्या होता भजन करनेसे ? न जिसमें भक्तिका है बल।।1।।
नाम चाहे   धरे साधू, मगर अंदर जो है गन्दा।
कौन धोवेगा भीतरका, जहाँ चलती सदा छलबल ?।।2।।
ऐ दुनियाँदारी के लोगों? हमारे से हों तुम अच्छे ।
कमाते और देते हों, पिनेको प्यासियों   को  जल।।3।।
सदा लेना ही हम सीखे, मार बातें ऋषीयोंकी।
वो तुकड्यादास यों बोले, मिलेगा केसे हमको फल ?।।4।।