अरे यह चोर की नगरी, यहाँ कैसा खडा है तू ?
(तर्ज : बजाई बन्सुरी मोहन, तूने जमुना किनारे... )
अरे यह चोर की नगरी, यहाँ कैसा खडा है तू ?
तस्वियाँ करले जल्दीसे,अकारथ क्यों पडा है तू ।।टेक।।
जो आते हैं यहाँ फँसते, बडा है जाल मायाका ।
योगि और ग्यानि-ध्यानी भी,क्या उनसे भी बडा है तू ? ।।1।।
टिकट ले हाथ में अपनी, नजर मत फेंक बाजुमें।
जहाँ देखा पड़ा चक्कर, यह किस कारण नडा है तू? ।।2।।
भाग्य थे करके ही आया, जनम मानवका ले करके।
मगर अफसोस है बन्दे, मोह-मदमें जडा है तू ? ।।3।।
काट दे फाँस मायाका, खड़ा हो त्याग करनेको ।
कपट, छल, मोह मत करना, समझ फिर तो चढा है तू ।।4।।
लगा गुरुग्यान की ज्योति, अंधेरा दूर करने को ।
कहे तुकड्या, तरेगा जब, तेरे मनसे लडा है तू ।।5।।