जभी मुझे कुछ मिला, अकेला बनमें बलपर चला
(तर्ज : मोल न कुछ भी लिया... )
जभी मुझे कुछ मिला, अकेला बनमें बलपर चला ।
साथ गुरुका फला, चरण पर मस्तक रखकर ढला।।टिक।।
जैसे कूर्म दूरसे देखे, बच्चे पाले नैन लगाके।
था वैसे बावला।। अकेला बनमें0।।1।।
जंगल के जनवर संगाती, वृक्ष-बेली से करता प्रीति।
नाम भजन में झूला ।।अकेला बनमें 0।।2।।
झरनोंकी झन्कारमें नाचूँ, लाज छोडकर मनको काँचू।
जरा न रखता ढिला ।।अकेला बनमें 0।।3।।
जब सोया तब साँप सिराने,लगता था प्रभु आये डराने।
दमसे पकडा खुला ।। अकेला बनमें0।।4।।
शेर खडा एकदम हो जावे,लगता था प्रभु साथ ही लावे।
वह भागा जब पिला।।अकेला बनमें 0 ।।5।।
प्रेमभरे भजनोंमें रोना, अपनेको आपही समझाना।
हँसना दिलसे फुला ।। अकेला बनमे 0।।6।।
तुकड्यादास कहे प्रभु सबका, जो चाहे होता है उसका।
सब रँगमें हैं घुला ।। अकेला बनमें 0 ।।7।।